Garbage management by self-learning education — Video article
कुछ लोगों को साथ लेकर सप्ताह या महीना या वर्ष में एक दिन झाड़ू, तसला, कुदाल लेकर सड़क, गली, नाली साफ कर देना। ऐसा करते हुए सेल्फी लेना, फोटो खिंचवा लेना। जान-पहचान या मित्रता या विभिन्न प्रकार के लेनदेन पर आधारित संबंधो के कारण मीडिया पर खबर प्रकाशित करवा लेना। इत्यादि-इत्यादि के द्वारा गारबेज-मैनेजमेंट न तो किया जा सकता है न ही सीखा जा सकता है। दरअसल धरातल पर बिना उतरे केवल शब्दों, तर्कों व खोखले विचारों के द्वारा समाधान की ओर ठोस रूप से नहीं बढ़ा जा सकता है।
व्यक्ति व समाज की जीवन शैली से जुड़े मुद्दों के संदर्भ में रातों-रात बदलाव नहीं होते हैं। लगातार प्रयास करते रहना पड़ता है वह भी आउटपुट का प्रत्यक्ष साक्षात्कार होने या न होने की चिंता किए बिना।
गारबेज-मैनेजमेंट हो या पानी या कृषि या अर्थ-व्यवस्था या शिक्षा, सभी में धैर्य के साथ लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी बिना अपेक्षा काम करते रहना पड़ता है। फिर समाधान व व्यवस्था व्यक्ति व समाज की मूल प्रवृत्ति व चरित्र में आ जाता है और पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाह में बना रहता है। परिणामतः समाज की अगली पीढ़ियां बेहतर सामाजिक समाधान की ओर बढ़ने के लिए परिष्कृत होती रहतीं हैं।
गारबेज-मैनेजमेंट के सेल्फ-लर्निंग एजुकेशन का एक उदाहरण
मेरी पत्नी व मैंने एक छोटा कूड़ा दान रसोई में रख रखा है, जिसमें दिन भर का सामान डाला जाता है। शाम को या उसके भर जाने पर उसको बागवानी में रखे बड़े कूड़ा-दानों में डाला जाता है। तीन प्रकार के कूड़ा-दान हैं। एक बागवानी के कूड़े मतलब पत्तियां, घास-फूस व टहनियां इत्यादि के लिए, एक रिसाइकिल होने वाले कूड़े के लिए तथा एक शेष प्रकार के कूड़े के लिए। जिस प्रकार का कूड़ा होता है, उसको उससे संबंधित कूड़े-दान में डाल दिया जाता है। यह प्रतिदिन की दिनचर्या है।
जिस दिन स्थानीय सरकार की ओर से कूड़ा-दानों का कूड़ा उठाने का सेमी-रोबोटिक वाहन आता है, उस दिन जल्दी सुबह या एक दिन पहले की शाम को घर की सीमा पर रखना होता है ताकि कूड़ा-वाहन कूड़े-दान से कूड़ा वाहन में डालकर सके।
जब हमारा पुत्र कुछ दिनों का था तबसे वह हम लोगों को ऐसा करते हुए देख रहा है। पुत्र ने सातवें महीने में ही चलना शुरू कर दिया था। आठवें महीने से हाथ में कपड़ा लेकर साफ सफाई करने का प्रयास करना शुरू कर दिया था। नौंवे महीने से छोटी मोटी चीजें रसोई के कूड़ा दान में डालना शुरू कर चुका था। जैसे-जैसे हाथों की शक्ति बढ़ती गई वैसे-वैसे वह बेहतर तरीके से कूड़ा रसोई के कूड़े दान में डालना अपने आप केवल हम लोगों को देखकर सीखता रहा।
समय के साथ-साथ बढ़ती हुई शारीरिक क्षमताओं के साथ-साथ रसोई का कूड़ा दान टांग कर घर के बड़े कूड़ा-दानों में डालना भी अपने आप केवल हम लोगों को करते हुए देखकर सीखता रहा।
तीन वर्ष की आयु का होते-होते कमरों का कूड़ा रसोई के कूड़ा दान में, रसोई के कूड़ा दान से घर के मुख्य कूड़ा दानों में डालना (शारीरिक ऊंचाई कम होने की वजह से इसमें कुछ परेशानी झेलनी पड़ती है), मुख्य कूड़ा दानों को घर व सड़क की सीमा रेखा पर रखना, वापस अंदर रखना। यह सब तीन वर्ष की आयु का शिशु खुशी खुशी गलती किए बिना कर लेता है।
हम लोग यदि कहीं जा रहे हैं, यदि रास्ते में कहीं कुछ कूड़ा दिख जाता है तो हम लोग उसे उठाकर किसी कूड़ा दान में डाल देते हैं। पुत्र हम लोगों की इस क्रिया को भी बचपन से देखता आ रहा है तो अब स्थिति यह है कि तीन वर्षीय पुत्र को कहीं कूड़ा दिखता है तो वह उसे उठाकर पास के किसी कूड़ा दान में डालने का प्रयास करते हैं। रास्ते में यदि कहीं पेड़ से गिरी टहनियां दिखाई देतीं हैं तो उनको घसीट कर फुटपाथ या रास्ते से हटाने का काम करते हैं।
तीन वर्ष के हो चुके पुत्र “आदि” को हम लोगों ने कभी यह सब करने के लिए कहा नहीं। उसने अपने आप हम लोगों को ऐसा करते हुए देख कर स्वतः सीखा। किसी एक बड़ी क्रिया या गतिविधि के साथ कई क्रियाओं की श्रंखला संबद्ध होती हैं, उनको भी अपने आप सीखने की घटनाएं स्वतः होती चली जाती हैं। स्वतः स्फूर्त तरीके से सीखने की प्रवृत्ति भी विकसित होती चली जाती है।
Video 01
आदि (आयु दो वर्ष)
Video 02
आदि (आयु तीन वर्ष)
Video 03
कूड़ा उठाने का सेमी-रोबोटिक वाहन
Vijendra Diwach
January 27, 2020 @ 1:00 pm
अनुकरणीय।बच्चे हमारे क्रियाकलापों से प्रभावित होते हैं।
vivekumaro.org
January 27, 2020 @ 1:29 pm
बच्चे हमारे क्रियाकलापों से ही सीखने की शुरुआत करते हैं
Rajneesh
January 27, 2020 @ 3:30 pm
निस्संदेह .. हम बच्चों को क्या करने को कहते हैं इसकी बजाय बच्चे हमारे द्वारा किए कामों का अनुसरण करते हैं..
आदि बाबू बेहतर इंसान बनने की प्रक्रिया में हैं
देखकर ख़ुशी होती है
????
vivekumaro.org
January 28, 2020 @ 10:49 am
प्रमाणिकता से ही सीखना हो पाता है, ढोंग से नहीं।
ज़िया उल बदर
January 28, 2020 @ 11:32 am
सही फ़रमाया आपने।
vivekumaro.org
January 28, 2020 @ 11:42 am
धन्यवाद